Sabir Pak Kaliyar Sharif
हज़रत साबिर पाक कलियारी रहमतुल्लाह अलैह – एक महान सूफी संत
ख्वाजा सुल्तान-उल-आरिफीन सैय्यद अलाउद्दीन अली अहमद “साबिर” कलियारी (1196–1291 ई.) भारत के 13वीं सदी के प्रसिद्ध सूफी संत और इस्लामी प्रचारक थे। उन्हें आमतौर पर साबिर पाक या साबिर कलियारी के नाम से जाना जाता है। आप चिश्ती सिलसिले की साबिरिया शाखा के संस्थापक माने जाते हैं। साथ ही, आप महान सूफी संत बाबा फरीदुद्दीन गंजशकर के भांजे और उत्तराधिकारी थे।
वंश और प्रारंभिक जीवन
साबिर कलियारी रहमतुल्लाह अलैह, हज़रत अब्दुल कादिर जीलानी रहमतुल्लाह अलैह के पड़पोते थे।
आपके पिता का नाम सैय्यद अब्दुस सलाम अब्दुर रहीम जीलानी था, जो अब्दुल वहाब जीलानी (हज़रत अब्दुल कादिर जीलानी के सबसे बड़े पुत्र) के बेटे थे।
आपकी माता का नाम जमीलाह था, जो बाबा फरीदुद्दीन गंजशकर की बड़ी बहन थीं। वह खुद भी इस्लाम के दूसरे खलीफा हज़रत उमर फ़ारूक रज़ियल्लाहु अन्हु की वंशज थीं।
आपका जन्म 13 रबी अल-अव्वल, 592 हिजरी (1196 ई.) को हुआ था। जब आपके पिता का देहांत हुआ (1204 ई. में), तब आपकी माता आपको लेकर पाकपट्टन पहुंचीं और आपको बाबा फरीद के संरक्षण में सौंप दिया।
🧘 आध्यात्मिक सेवा और नाम “साबिर”
बाबा फरीद ने हज़रत साबिर को लंगर (भोजन वितरण) की सेवा सौंपी। आपने इसे हर्षपूर्वक स्वीकार किया और साथ ही इबादत (नमाज़, ध्यान) में लीन हो गए। आपने अपने कार्य को पूरी लगन और समर्पण से निभाया।
आपने कभी खुद भोजन नहीं किया, बल्कि पत्तों और जंगल के फलों से ही अपना पेट भरते रहे। जब आपकी माँ आपको मिलने आयीं, तो उन्होंने आपके अत्यधिक कमजोर होने की शिकायत बाबा फरीद से की।
बाबा फरीद ने जब आपसे पूछा कि तुम इतना कमजोर क्यों हो, तो आपने उत्तर दिया:
“आपने मुझे लंगर बांटने का हुक्म दिया था, खाने का नहीं।”
यह सुनकर बाबा फरीद बहुत प्रसन्न हुए और कहा:
“वह वास्तव में सब्र (धैर्य) वाला है।”
तभी से आपको “साबिर” के नाम से जाना जाने लगा।
🕌 दरगाह साबिर पाक, कलियार शरीफ
हज़रत साबिर पाक की दरगाह भारत के उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार ज़िले में स्थित है, जिसे पीरान-ए-कलियार शरीफ कहा जाता है। यह स्थल रुड़की से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर, गंगा नहर के किनारे स्थित है। यह स्थान एक पक्की सड़क द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
🕊️उर्स और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक
हर साल रबी अल-अव्वल के महीने में 15 दिन का उर्स (मेला) आयोजित किया जाता है। यह उर्स लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यह दरगाह भारत में धार्मिक सद्भाव और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन चुकी है, जहाँ हर धर्म, जाति और पंथ के लोग श्रद्धा से आते हैं।
निष्कर्ष
हज़रत साबिर कलियारी रहमतुल्लाह अलैह का जीवन सब्र, सेवा, त्याग और ईश्वर भक्ति का प्रतीक है।
आपकी दरगाह आज भी श्रद्धालुओं के लिए रूहानी शांति और दुआओं की मंज़िल है।
हज़रत साबिर पाक कलियर शरीफ़ पर कई सूफ़ी शायरी, मनक़बतें और अशआर लिखे गए हैं जो उनकी करामात, सब्र और रूहानी फज़ीलतों को बयां करते हैं।
नीचे कुछ सुंदर और दिल को छू जाने वाली शायरी/मनक़बत की लाइनें दी गई हैं:
🌹 Sabir Pak Shayari / मनक़बत
सबर की मिसाल है, दरगाह कलियर की,
हर दिल की मुराद है, हवा इस ज़मीर की।
जो भी आया खाली हाथ, लौटकर न गया,
साबिर पाक ने सुनी है, हर दिल की सदा।
درِ صابر پہ جو جھک جائے، وہ خالی نہیں جاتا،
کلیئر کی ہوا میں، رب کا پیغام آتا۔
मिट जाते हैं ग़म उसके, जो दर पे चला आता है,
साबिर पाक का क़दम, रहमतें बरसाता है।
Sabir ke dar ka hai roshan har kona,
Kaliyar ka noor hai, dil ka sukoon kona.
صابر کلیری کے قدموں کا جو دامن تھام لے،
دنیا و آخرت دونوں سنور جائیں۔
“सच में करामाती हैं हज़रत साबिर पाक कलियर शरीफ – जो भी उनकी चौखट पर जाता है, दुआ लेकर लौटता है…”
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