Baba Farid Ganjshakar

बाबा फरीदुद्दीन मसूद गंजशकर, जिन्हें आमतौर पर बाबा फरीद के नाम से जाना जाता है, 12वीं सदी के अंत और 13वीं सदी की शुरुआत में दक्षिण एशिया के सबसे महान सूफी संतों में से एक थे। उनका नाम आज भी हिंदू, मुस्लिम और सिख – तीनों समुदायों में श्रद्धा और सम्मान के साथ लिया जाता है।

उनकी दरगाह पाकिस्तान के पाकपटन शरीफ में स्थित है, जो आज लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है। उनके जीवन की शिक्षाएं, सूफी शायरी और आध्यात्मिक विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उस समय थे।


 जन्म और प्रारंभिक जीवन

बाबा फरीद का जन्म 4 अप्रैल 1188 ईस्वी को कोठेवाल नामक गाँव में हुआ, जो वर्तमान में पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र में स्थित है। उनके पिता का नाम जमालुद्दीन सुलेमान और माता का नाम क़र्सुम बीबी था। उनके पूर्वज अफगानिस्तान के काबुल से भारत आए थे।

बचपन से ही वे आध्यात्मिकता की ओर आकर्षित थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा मुल्तान में हुई — जहाँ उन्होंने कुरान, हदीस और तसव्वुफ (सूफीवाद) का गहन अध्ययन किया।


🕌 अध्यात्म की ओर यात्रा

बाबा फरीद को सूफी सिलसिले चिश्ती तरीक़ा” में दीक्षा मिली। उनके उस्ताद ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी थे, जिन्होंने उन्हें दिल्ली में आध्यात्मिक मार्गदर्शन दिया।

उस्ताद की मृत्यु के बाद बाबा फरीद ने हांसी (हरियाणा) छोड़कर अपने गाँव लौटने का निर्णय लिया और अजोधन (अब पाकपटन, पाकिस्तान) में बस गए।

वहीं उन्होंने लोगों को मोहब्बत, ईमानदारी, सेवा और सब्र का पाठ पढ़ाया। उनके प्रवचन और जीवन-शैली में सादगी और करुणा की झलक मिलती थी।


✍️ बाबा फरीद की सूफी शायरी

बाबा फरीद को पंजाबी भाषा के पहले कवि के रूप में भी जाना जाता है। उनकी शायरी में अध्यात्म, प्रेम, दुःख और सच्चाई की गहराई है।

उनके कुछ प्रसिद्ध शेर:

“फरीदा, जो तैनु मारण मुकियाँ, तिन्हां नूं मारे घुम”
“काले मेरे कपड़े, काला मेरा वेश, गुनाहां भरेआं मैं फिरां, लोक कहें दरवेश”

इन शेरों में वे आत्मज्ञान, समाज की विडंबनाओं और प्रभु-प्रेम को सरल लेकिन प्रभावशाली शब्दों में व्यक्त करते हैं।


🕋 पाकपटन की दरगाह

बाबा फरीद की दरगाह, जिसे “पाकपटन शरीफ” कहा जाता है, सूफी परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह दरगाह सफेद संगमरमर से बनी है, जिसमें नूरी दरवाज़ा और बहिश्ती दरवाज़ा जैसे पवित्र द्वार हैं।

हर दिन यहां लंगर (प्रसाद) वितरित होता है और हज़ारों लोग मन्नतें मांगने आते हैं। महिलाएं आम तौर पर अंदर प्रवेश नहीं कर पातीं, लेकिन इतिहास में कुछ विशेष महिलाएं, जैसे बेनेज़ीर भुट्टो, को अनुमति दी गई थी।


🌍 बाबा फरीद और यरूशलेम

क्या आप जानते हैं कि बाबा फरीद ने कुछ साल यरूशलेम (Jerusalem) में भी बिताए थे? वहां एक जगह है जिसे Al-Hindi Serai या Indian Hospice कहा जाता है।

माना जाता है कि वे वहाँ ध्यान और सफाई का कार्य करते थे। आज भी भारतीय हज़ pilgrims उसी जगह ठहरते हैं जहां बाबा फरीद ने समय बिताया था।


🙏 निष्कर्ष

बाबा फरीद सिर्फ़ सूफी संत नहीं थे — वे इंसानियत, मोहब्बत और रूहानी ज्ञान के प्रतीक थे। उनकी शायरी और जीवन-शैली आज भी लोगों को आध्यात्मिक दिशा देती है।


✨ बाबा फरीद की सूफी शायरी (Punjabi with Hindi meaning)

“गलीं चिक्कड़ दूर घर, नाल पियारे नींह
चल्लां तां भिज्जे कम्बली, रहां तां टूटे नींह”

हिंदी अर्थ:
रास्ता कीचड़ भरा है और मेरा प्रिय (प्रभु) दूर रहता है।
अगर मैं चलता हूँ, तो मेरी चादर गीली हो जाती है,
और अगर मैं रुकता हूँ, तो मेरी आत्मा (प्रेम की डोर) टूट जाती है।

भावार्थ:
यह शेर प्रेम की कसौटी पर चलने वाले मार्ग की कठिनाइयों को दर्शाता है। बाबा फरीद बता रहे हैं कि सच्चे प्रेम (ईश्वर) तक पहुंचना आसान नहीं, रास्ता कठिन और संघर्षपूर्ण है — लेकिन रुकना भी नहीं है।

 

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