9 स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सिद्ध मंत्र

9 स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सिद्ध मंत्र

 

दाढ़ कीड़े का मंत्र

कसोरा में सामें में सीसे में पानी सीसी में कीड़ा-कीड़ा में पीड़ा मेरी पीठ टकें शब्द सांचा फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।

विधि-दो कील से दाढ़ कीलित करके एक को कुएं में डाल दें, दूसरे को नीवं में गाढ़ें। कीड़ा मर जायेगा।

 

कंठबेल का मंत्र

इस मंत्र से भभूत पढ़कर झाड़ें तो कंठ रोग दूर हो जाते हैं। ॐ कंठ बेल गुठभर माली सिर पर बने वज्र की ताक्षी गोरखनाथ जागता आया बढ़ती बल सूत घटाया घट गया रोग माचै फूटे पीड़ा करे तो गोरखनाथ की दुहाई।

है कया दें कर मान दें।

 

नेत्र दुखने का मंत्र

मंत्र पढ़कर भभूत से सेंकने पर नेत्र दुखने बंद हो जायेंगे।

मंत्र-ॐ नमों झलमल जाहर भरी, तलाई जहां बैठा हनुमन्त आई पाले न करेगा, यती हनुमंत रखे हीड़ा।

मानस प्रकाशन में सिलाकर ताबीज बना लें। फिर रोगी के गले में डाल दें। पागलपन कुछ समय में ठीक हो जायेगा।

 

ब्लडप्रेशर

इसमें रुद्राक्ष की माला पहनें। रुद्राक्ष धागे में पिरोएं।

प्रातः काल नियम से ग्यारह बार ॐ मंगल ग्रह देवाय नमः का जाप करें जब तक मंत्र का जाप करें, तब तक नमक का सेवन कम से कम करें या बिल्कुल न करें।

 

नेत्रदोष

नेत्रों में दोष उत्पन्न होने पर गोरखमुंडी का पौधा उखाड़ लायें। फिर घर लाकर जल से धोकर सुखा लें। चार-पंच दिन बाद जब यह सूख जाये तो कूट-पीसकर उसका चूर्ण बना लें। रात को सोते समय एक चुटकी लोटे में डाल दें। प्रतिदिन प्रातः उठकर उस जल से आंखों को धो लें। इससे आंखों के रोग समाप्त होते हैं। इस चूर्ण को एक चुटकी दूध में डाल दें और उसे पी लें। इससे शारीरिक शक्ति का विकास होता है और नेत्रों में अपूर्व ज्योति आ जाती है।

 

गंजापन

बहुत से स्त्री-पुरुषों के सिर के बाल गायब हो जाते हैं। बाल बहुत झड़ते हैं और टूटते हैं तो गंजापन हो जाता है। गधे के सिर की हड्डी को जैतून के तेल में घिसकर लेप बनायें और गंज के स्थान पर लगाकर रात को सो जायें। प्रातः काल सूर्य की ओर मुख करके लेप को धो डालें।

लम्बे और घने बाल

काले रंग के घोड़े की लीद जलाकर भस्म बना लें। भस्म बन जाने पर उसकी राख धोई तिल्ली के तिल में मिलाकर बालों के में मालिश करें और लगातार यह तेल लगाते रहें। इसके नियमित प्रयोग से बाल लम्बे व घने होंगे।

यंत्र- थक

लिए हल्के नमः। अधि

लेकर डाल २०० रविक

भूख

खाने टूटन अतः पेट

लेकर १०८ ओर को

आल

व्यकि जाती पड़े रेशम

 

थकावट

कार्य अधिक कर लेने पर यात्रा से उत्पन्न थकावट दूर करने के लिए ठंडे पानी से दोनों पैरों को धो लें। फिर पैरों के तलुओं में हल्के-हल्के निम्न मंत्र का जप करते हुए हाथ फेरें-ॐ वासु देवाय नमः। थोड़ी देर में थकावट दूर होकर स्फूर्ति का संचार हो जायेगा।

अधिक मासिक धर्म होने पर

लगातार अधिक स्त्राव होने पर मंगल के दिन ६ ग्राम धनिया लेकर किसी कलई हुए पीतल के बर्तन में आधा किलो पानी डालकर पकाएं। जब पानी आधा रह जाये तो उतार कर उसमें २०० ग्राम मिश्री मिला दें। अब इसको वृहस्पतिवार से प्रारंभ कर रविवार तक थोड़ा-थोड़ा पिलायें। मासिक धर्म नियमित हो जायेगा।

भूख न लगने पर

बहुत से व्यक्तियों को कभी-कभी ही भूख लगती है। कभी खाने का मन भी नहीं करता। ऐसा होने पर शरीर में आलस्य और टूटन भर जाती है। भूख मर जाती है। चेहरा निस्तेज हो जाता है। अतः ऐसी स्थिति में रोगी व्यक्ति को रोज कम से कम एक घंटा पेट के बल सोना चाहिए।

प्रातः काल सोकर उठने पर एक गिलास शुद्ध जल हाथ में लेकर जल की ओर देखें और ॐ अग्नि चक्रयहीय नमः का १०८ बार जप करें। पाठ करते समय केवल हाथ में लिए जल की ओर देखते रहें। जाप पूरा करते ही सारा जल पी लें और गिलास को औंधा करके रख दें। ऐसा करने से भूख लगने लगेगी।

 

आलस्य

आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है, इस बीमारी के कारण व्यक्ति का काम-काज में मन नहीं लगता, बात करते-सुस्ती आ जाती है, बदन टूटने लगता है। नींद-सी आती रहती है। एक जगह पड़े रहने का मन करता है। ऐसा व्यक्ति सुबह स्नान करते समय रेशम का धागा हाथ में लेकर सूर्य की ओर मुंह करके खड़े हो

 

ॐ क्रां क्रीं क्रौं उं फट् स्वाहा।

मानस प्रकाशन

मंगलवार के दिन कुमारी कन्या को भोजन करवा कर वस्त्रालंकार देकर संतुष्ट करके, इस मंत्र का १ महीने में ५०,००० जाप पूर्ण करें, परन्तु जाप का प्रारम्भ मंगलवार को ही करें तथा जीवन-पर्यन्त ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा एक समय भोजन करें, तो निःसन्देह सन्तान उत्पन्न होती है।

 

सर्प-विष मुक्ति

ॐ हिमवंतस्योत्तरे पार्श्वे पर्वत गंधमादने तस्य पर्वतस्य प्राम्दिवमागे कुमारी शुभ पुण्य लक्षणाए पोव चर्मवसना घोणसैः के उरन्नपुरा सर्प पुण्य मेखला आसी विसयों चलि का दृष्टि विष कर्णा व तांसिका खादेती विण पुष्पाणी पिवंती मारुतं लतां सभालं देति लावेति एहतेहि वत्से श्रुणोहि में जांगुली नाम विधाह उत्तमा मवष नाशिनी यास्किणि मन नाम नातत्सर्व नाश्येये विषं।

ॐ इलविते हूं वे डुवालिए द्रास्से दुसलिए जक्के जक्कारेण म्मे मम्मरेण संजक्करेण अघे अनघे अखांयतीये अपयायंतीय श्वेतं श्वेतं तुंडे अनुान रक्ते इः ठ ॐ इल्ला बिल्ला चक्का वक्का कोरड़ा कोरङ्क्ति घोरड़ा-घोरड़ति मोरड़ा अट्टे-अट्ट रूहें सप्प होंडु रूहें सप्पे सम्प होंडु रूहें नागे नागरूहे नाग होडु अहें अच्छे अछले विषतंडि विषत्रंडि जिंडि जिंडि स्फुट-स्फुट स्फोटय इदाषिषम् विषं गच्छतु भोक्तरं गच्छतु भूम्या गच्छतु स्वाहा।

इस मन्त्र विद्या को जो पढ़ता है, सुनता है, उसको ७ वर्ष सांप दृष्टि में नहीं दिखेगा अर्थात उसको ७ वर्ष तक सर्प के दर्शन नहीं होंगे और काटेगा भी नहीं और काटेगा भी तो शरीर में जहर नहीं चढ़ेगा।

ज्वर – नाश

वानरस्य मुख घोर आदित्य मेम तेजसं ज्वर तृतीयक गाम

 

 

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